Wednesday, August 22, 2007

नमाज़ो का वक़्त व तादादे रकाअत व नियत जानिये.

फज़िर :- फज़िर का वक़्त सुबह सादिक (भोर) से सूरज निकलने से पहले तक रहेता है। मगर नमाज़ ऐसे वक़्त में अदा कि जायेगी कि अगर नमाज़ में कोई गलती हो जाये तो वक़्त के अन्दर दो बारा पढ़ी जा सके। इसका मुस्ताहिब वक़्त जब उजाला हो जाये तब है। इसमे कुल चार रकात है, दो रकाअत सुन्नत और दो रकाअत फ़र्ज़।
दो रकाअत सुन्नते मुवक्किदह कि नियत :-
नियत कि मैंने दो रकाअत नमाज़ सुन्नते मुवक्किदह पढने के वास्ते अल्लाह ताअला के, मुँह मेरा तरफ काबा शरीफ़ के, अल्लाहो अकबर।
दो रकाअत फ़र्ज़ कि नियत :-
नियत कि मैंने दो रकाअत नमाज़ फ़र्ज़ फजिर पढने के वास्ते अल्लाह ताअला के, मुंह मेरा तरफ काबे शरीफ़ के, अल्लाहो अकबर।
नोट :-
अगर कज़ा हो जाये, तो सूरज निकलने के बाद जब सवा नेज़ पेर आ जाये और आधे दिन से पहेले दो रकाअत सुन्नते मुवक्किदह और दो रकाअत फ़र्ज़ अदा करे।
ज़ुहर :- ज़ुहर का वक़्त सूरज ढलने के बाद से उस वक़्त तक है, जब तक हर चीज़ का साया, असली साया के अलावा दो गुना ना हो जाये। गर्मी के मौसम में ठंडे वक़्त में और सर्दी में शुरू वक़्त में पढ़ना मुस्तहिब है। इसमें कुल बारह रकातें पढी जाती है। पहेले चार रकाअत सुनाते मुवक्किदह, उसके बाद चार रकाअत फ़र्ज़, फिर दो रकाअत सुनाते मुवक्किदह और आख़िर में दो रकाअत नफिल।
चार रकाअत फ़र्ज़ कि नियत :-
नियत कि मैंने चार रकाअत नमाज़ फ़र्ज़ ज़ुहर पढने के वास्ते अल्लाह ताअला के, मुंह मेरा तरफ काबे शरीफ़ के, अल्लाहो अकबर।
नोट :- अगर कज़ा हो जाये तो सिर्फ चार रकाअत फ़र्ज़ पढ़ले। ( सुन्नते मुवक्किदह कि नियत ऊपर गुज़र चुकी है। नफिल कि नियत का तरीका आगे आएगा।
असिर :- असिर का वक़्त ज़ुहर का वक़्त खत्म हो जाने के बाद से सूरज डूबने के पहेले तक है। इसमे मुस्तहिब वक़्त सर्दी वा गरमी दोनो ही मौसम में गुरुबे आफताब (सूर्यास्त) से बीस मिनट कब्ल (पूर्व) का होता है। इसमें कुल चार रकाअत सुन्नते ग़ैर मुवक्किदह और चार रकाअत फ़र्ज़ अदा कि जाती है। कज़ा होने पेर सिर्फ चार रकाअत फ़र्ज़ अदा करे।
चार रकाअत फ़र्ज़ कि नियत :-
नियत कि मैंने चार रकाअत नमाज़ फ़र्ज़ असिर पढने के वास्ते अल्लाह ताअला के, मुंह मेरा तरफ काबे शरीफ़ के, अल्लाहो अकबर।
मगरिब :- इसका वक़्त सूरज डूबते ही शुरू हो जाता है, और पशचिम में सफेदी रहेने तक बाक़ी रहता है। मुस्तहिब वक़्त शुरू का है, लेकिन अगर बदली का दिन हो तो कुछ देर करें। इसमे कुल सात रकाअते है, तीन रकाअत फ़र्ज़, दो रकाअत सुन्नते मुवक्किदह और दो रकाअत नफिल।
तीन रकाअत फ़र्ज़ कि नियत :-
नियत कि मैंने तीन रकाअत नमाज़ फ़र्ज़ मगरिब पढने के वास्ते अल्लाह ताअला के, मुंह मेरा तरफ काबे शरीफ़ के, अल्लाहो अकबर। कज़ा होने पर सिर्फ तीन रकाअत फ़र्ज़ पढ़ले।

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